सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय, रचनाएँ और भाषा शैली

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय, रचनाएँ और भाषा शैली

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एक साहित्यिक बहुमुखी कवि हैं

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एक ऐसा नाम जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को प्रतिबिंबित करता है हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है। 21 फरवरी 1896 को बंगाल के मिदनापुर में जन्मे निराला की जीवन यात्रा लचीलेपन जुनून और साहित्यिक प्रतिभा की एक आकर्षक कहानी है। इस लेख का उद्देश्य सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के बहुमुखी जीवन में गहराई से उतरना उनके प्रारंभिक वर्षों साहित्यिक योगदान व्यक्तिगत संघर्ष और हिंदी साहित्य की दुनिया पर स्थायी प्रभाव की खोज करना है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

निराला का प्रारंभिक जीवन विशेषाधिकार और त्रासदी दोनों से भरा था। एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे उनके पिता पंडित कृष्ण दयाल त्रिपाठी एक सरकारी कर्मचारी थे। हालाँकि भाग्य को तब करारा झटका लगा जब सात साल की उम्र में निराला ने अपनी माँ को खो दिया। इस प्रारंभिक त्रासदी ने उनके मानस पर एक अमिट छाप छोड़ी जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को आकार दिया और उनके बाद के साहित्यिक कार्यों को प्रभावित किया।

विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद निराला छोटी उम्र से ही पढ़ने के शौकीन थे। साहित्य और कविता के प्रति उनका प्रेम उनके स्कूल के वर्षों के दौरान विकसित हुआ। उन्होंने खुद को कालिदास, तुलसीदास और कबीर जैसे प्रसिद्ध कवियों की रचनाओं में डुबो दिया। साहित्य जगत से उनके गहरे जुड़ाव ने उन्हें ‘निराला’ उपनाम अपनाने के लिए प्रेरित किया जिसका अर्थ है ‘अद्वितीय’।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के साहित्य की यात्रा

निराला की साहित्यिक यात्रा को वाराणसी में रहने के दौरान गति मिली जहाँ वे शहर के जीवंत सांस्कृतिक और बौद्धिक परिवेश से परिचित हुए। प्रमुख विद्वानों के मार्गदर्शन में उनका काव्य कौशल विकसित हुआ और उन्होंने विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताओं का योगदान देना शुरू कर दिया।

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1923 में निराला ने अपना पहला कविता संग्रह “अनामिका” प्रकाशित किया जिसने अपनी ताजगी और मौलिकता के लिए ध्यान आकर्षित किया। “अनामिका” की कविताएँ निराला के गहन आत्मनिरीक्षण और दार्शनिक चिंतन को दर्शाती है। इस संग्रह ने उनकी साहित्यिक विरासत की शुरुआत की और उन्हें हिंदी साहित्य में एक आशाजनक आवाज के रूप में स्थापित किया।

साहित्य जगत में निराला का योगदान केवल कविता तक ही सीमित नहीं था। वह एक प्रखर निबंधकार, आलोचक और कथा लेखक थे। बौद्धिक गहराई और सामाजिक-सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से भरपूर उनके निबंध समसामयिक मुद्दों का गहन विश्लेषण प्रदान करते हैं। उनके कार्यों में पारंपरिक भारतीय मूल्यों और आधुनिक संवेदनाओं का एक अनूठा मिश्रण प्रदर्शित हुआ जिसने उन्हें अपने समय का साहित्यिक दिग्गज बना दिया।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएँ 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएँ

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपने शैली और साहित्यिक योगदान के माध्यम से भारतीय साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

1. “आत्मकथा” (अनामिका): सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का पहला काव्य संग्रह है “आत्मकथा” जिसे “अनामिका” कहा जाता है। इसमें उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूपे हुए विचारों और अनुभवों को साझा किया है।

2. “रहस्य” (1935): यह उनका एक और प्रसिद्ध काव्य संग्रह है जिसमें उन्होंने अपनी भावनाओं को विशेषता से व्यक्त किया।

3. “चरित्रहीन” (1928): इस काव्य संग्रह में निराला ने सामाजिक मुद्दों, राजनीतिक समस्याओं और मानवीय सम्बन्धों पर अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया।

4. “दृम्भ” (1930): इस काव्य संग्रह में निराला ने अपनी आत्मा के विचारों को अद्वितीयता के साथ प्रस्तुत किया और मानवता की महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।

5. “सरोज स्मृति” (1933): इस कृति में निराला ने अपने जीवन के अनुभवों और भावनाओं को व्यक्तिगत रूप से छवि बनाकर प्रस्तुत किया।

6. “गितिका” (1942): इस काव्य संग्रह में निराला ने भगवद गीता के तत्त्वों पर अपनी विचारशीलता को प्रस्तुत किया।

7. “आज का आलम” (1925): यह उनका पहला प्रसिद्ध नाटक है जिसमें उन्होंने समाज में हो रहे परिवर्तनों और आलम-ए-इंसानी की चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया।

8. “अलंकार” (1928): इस नाटक में निराला ने भारतीय संस्कृति और साहित्य के महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

इन रचनाओं के माध्यम से सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने विभिन्न विषयों पर अपनी दृष्टि और विचारशीलता को प्रस्तुत किया और हिंदी साहित्य को एक नए दर्पण से देखने का अवसर प्रदान किया।

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सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविताएँ

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जिन्हें हिंदी साहित्य के महान कवि में से एक माना जाता है ने कई प्रमुख रचनाएं लिखीं हैं। यहां उनकी 10 प्रमुख रचनाएं हैं –

1. राम के नाम (राम की शक्ति पूजा)

2. आत्मजयी (एक गायक की आत्मकथा)

3. परिक्रान्त (कविता संग्रह)

4. अग्नि की ओर (कविता संग्रह)

5. नौका दोनों द्वार (कविता संग्रह)

6. दृष्टिकौशल (कविता संग्रह)

7. चरित्रहीन (कविता संग्रह)

8. हार या जीत (नाटक)

9. सरोज स्मृति (कविता संग्रह)

10. नीलकंठ (कविता संग्रह)

इनमें से कई काव्य संग्रह और कविता संग्रह हैं जो उनकी साहित्यिक महत्वपूर्णता को दर्शाते हैं।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की प्रमुख कहानियाँ

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन काव्य, कविताएं, और कहानियों का समृद्धि से भरा हुआ है। हालांकि उनकी खुद की नाटक और कहानियों की संख्या अधिक नहीं है और कुछ कहानियाँ अधूरी रह गई हैं। यहां कुछ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कहानियों के नाम हैं –

1. विष्णुपुराण (एक ग्राम की कथा)

2. प्रेम (एक बाल कहानी)

3. रतियाँ (एक आधुनिक नाटक)

4. किशन कन्हैया (एक बाल कहानी)

5. अवतारण (एक ग्राम की कथा)

6. नारी (एक कहानी)

7. परिव्राजक (एक बाल कहानी)

8. राजा शिकारी (एक बाल कहानी)

ये कुछ प्रमुख कहानियाँ हैं जो सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखी गईं थीं।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के प्रमुख नाटक

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने कुछ नाटक लिखे हैं लेकिन उनकी नाटकों की संख्या बहुत कम है। यहां उनके कुछ मुख्य नाटक हैं –

1. अभिग्यान शकुन्तलम् – इस नाटक का संदेश महाकाव्य “अभिज्ञानशाकुन्तलम्” के आधार पर है।

2. हार-या-जीत – यह एक नाटक है जो क्रान्तिकारी भारतीय योद्धा राजा वीरभद्र सिंह की कहानी पर आधारित है।

3. बैलफूल – इस नाटक में भगत सिंह के अद्वितीय बलिदान की कहानी है।

4. दुबले हूए मुख से – इस नाटक का संदेश समाज में असमानता और न्याय की मांग करता है।

5. अग्निज्वाला – यह एक संगीत-नृत्य नाटक है जो सती प्रथा के खिलाफ है।

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ये नाटक सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के कविता संग्रह और कहानियों के साथ मिलकर उनकी साहित्यिक विविधता को प्रस्तुत करते हैं।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के प्रमुख निबंध

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के प्रमुख निबंधों के नाम निम्नलिखित हैं –

1. सौर सार्थक

2. हमारी नारीवादी युवा पीढ़ी

3. अर्थी और विधवा

4. समाजशास्त्र की दृष्टि में स्त्री

5. स्वदेश प्रेमी निबंधकार

6. स्वामी सहजानंद और उनकी संस्कृति

7. कविता नाटक और निबंध

8. स्वदेशभक्त अबनिन्दनाथ मुखर्जी

9. विश्व साहित्य में हिन्दी

10. काव्य-परिश्रम का मौन योगी

इनमें से कुछ निबंध उनके साहित्यिक दृष्टिकोण और समाजशास्त्रीय विचारों को प्रकट करते हैं। इन निबंधों के रूप में निराला ने विभिन्न विषयों पर अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की आत्मकथाएँ

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की आत्मकथाएँ उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को साझा करती हैं। ‘निराला’ जी ने बहुत कम आत्मकथाएँ लिखी हैं और यहां कुछ मुख्य आत्मकथाओं का उल्लेख करते हैं –

1. आत्मजयी (एक गायक की आत्मकथा)

यह आत्मकथा निराला के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं और उनके साहित्यिक यात्रा को विवरणित करती है।

2. मेरे घर के ऊपर (कहानी-संग्रह)

इसमें निराला ने अपने परिवार, बचपन, और अन्य महत्वपूर्ण समय की घटनाओं का विवरण किया है।

इनमें से पहली आत्मकथा “आत्मजयी” एक महत्वपूर्ण रचना है जो ‘निराला’ ने अपने जीवन का विवरण किया।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का व्यक्तिगत संघर्ष और आध्यात्मिक खोज

निराला का निजी जीवन चुनौतियों से भरा था। वित्तीय कठिनाइयों प्रियजनों के नुकसान के साथ मिलकर उनकी यात्रा में जटिलता की परतें जुड़ गईं। इन कठिनाइयों के बावजूद निराला की साहित्य के प्रति प्रतिबद्धता अटूट रही।

निराला के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ गांधीवादी आंदोलन से उनका जुड़ाव था। महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित होकर निराला ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। सामाजिक न्याय और आध्यात्मिकता की उनकी गहरी भावना को उनके लेखन में अभिव्यक्ति मिली जहां उन्होंने परंपरा और प्रगति के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण की वकालत की।

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निराला की आध्यात्मिक खोज ने उन्हें विभिन्न दार्शनिक और धार्मिक परंपराओं का पता लगाने के लिए प्रेरित किया। रहस्यवाद और वेदांत दर्शन में उनका विसर्जन उनके बाद के कार्यों में स्पष्ट है जहां वे अस्तित्व संबंधी प्रश्नों और वास्तविकता की प्रकृति से जूझते हैं। निराला के जीवन के इस चरण ने उनकी साहित्यिक खोज में एक आध्यात्मिक आयाम जोड़ा जिससे वे एक विचारक और दार्शनिक के रूप में अलग हो गये।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की विरासत और साहित्यिक प्रभाव

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की साहित्यिक विरासत हिंदी साहित्य पर उनके स्थायी प्रभाव का प्रमाण है। उनकी कविता अपनी गीतात्मक गुणवत्ता और दार्शनिक गहराई की विशेषता के कारण पाठकों के बीच आज भी गूंजती रहती है। निराला द्वारा प्रेम और प्रकृति से लेकर सामाजिक मुद्दों और आध्यात्मिकता तक विविध विषयों की खोज उनकी बौद्धिक खोज की व्यापकता को दर्शाती है।

आधुनिक हिंदी गद्य पर निराला के प्रभाव और 20वीं सदी की शुरुआत के सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार देने में उनकी भूमिका को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। हिंदी कविता में साहित्यिक पुनर्जागरण छायावाद आंदोलन में उनके योगदान ने भारतीय साहित्य के क्षेत्र में एक पथप्रदर्शक के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत किया।

अपनी साहित्यिक प्रतिभा के अलावा निराला की सामाजिक मुद्दों के प्रति प्रतिबद्धता और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका ने उन्हें प्रशंसा और सम्मान दिलाया। पारंपरिक को समकालीन के साथ आध्यात्मिक को सांसारिक के साथ मिलाने की उनकी क्षमता ने उनके लेखन में एक अनूठा स्वाद जोड़ा जिससे वह अपने युग के साहित्यिक दिग्गज बन गए।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की भाषा शैली

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैली

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की भाषा शैली उनके साहित्यिक कार्यों में अत्यंत सुंदर और विशेष है। उनका लेखन सार्थक, भावपूर्ण, और सुरमा से भरा होता है। उनकी कविताओं में भाषा का उपयोग गहरा और सुगम है जो पाठकों को उनकी भावनाओं और विचारों के साथ जोड़ता है।

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‘निराला’ ने अपने लेखन में रोमांटिक और आत्मविश्वासपूर्ण भावनाओं को बखूबी व्यक्त किया और उन्होंने समाज, धर्म, और मानवता के विभिन्न पहलुओं पर अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। उनकी भाषा में सौंदर्य, भावनात्मकता, और आलोचनात्मक दृष्टिकोण का संगम है जो उन्हें हिंदी साहित्य के महान कवियों में से एक बनाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्य में स्थान

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्य में स्थान

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जिन्हें हिंदी साहित्य के महान कवि में से एक माना जाता है उनका साहित्य विशेषत रोमांटिक काव्य और सामाजिक चेतना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

1. काव्य-परिश्रम: निराला का काव्य अद्वितीय और उदात्त है। उनकी कविताएं भक्ति, प्रेम, और सामाजिक विषयों पर आधारित हैं। “राम के नाम,” “आत्मजयी” और “परिक्रान्त” जैसी कविताएं उनके प्रमुख काव्यसंग्रह हैं।

2. नाटक लेखन: निराला ने कई नाटक लिखे हैं जिनमें सामाजिक, राजनीतिक, और धार्मिक मुद्दे पर चर्चा होती है। “हार या जीत,” “बैजंती,” और “आईना” उनके प्रमुख नाटक हैं।

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3. आत्मकथा: उनकी आत्मकथा “आत्मजयी” में उन्होंने अपने जीवन की घटनाओं और अनुभवों को साझा किया है। यह उनके व्यक्तिगत और साहित्यिक जीवन के बारे में बताती है।

4. निबंध और लेखन: निराला ने विभिन्न विषयों पर निबंध भी लिखे हैं जिनमें साहित्यिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दे शामिल हैं।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म और मृत्यु

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी का जन्म 21 जनवरी 1896 को हुआ था। वे भारतीय साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक थे और उन्हें हिंदी साहित्य के ‘रूपकार’ के रूप में सम्मानित किया जाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का असली नाम गोपालप्रसाद है, लेकिन वे अपने लेखनी में एक नए रूपकार बने रहे हैं। उन्होंने भारतीय साहित्य में रोमांटिक और सामाजिक विषयों पर अपने योगदान के लिए प्रशंसा प्राप्त की है।
वे भारतीय साहित्य के महान कवियों में से एक थे और उन्हें “नायक” और “राष्ट्रकवि” के रूप में सम्मानित किया जाता है। निराला जी का योगदान हिंदी साहित्य में अद्वितीय है और उनका साहित्य आधुनिक भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण युगदाता के रूप में माना जाता है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी का निधन 15 अप्रैल 1961 को हुआ था।

निष्कर्ष

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की जीवन यात्रा विपरीत परिस्थितियों पर विजय, बौद्धिक अन्वेषण और साहित्यिक उत्कृष्टता की एक मनोरम कथा है। उनकी कविताएँ, निबंध और कथा साहित्य समय और संस्कृति की सीमाओं को पार करते हुए पाठकों की पीढ़ियों को प्रेरित करते रहते हैं।

निराला की जीवनी की खोज में हमने एक ऐसे कवि की आत्मा की झलक देखी है जो जीवन और कला की जटिलताओं से जूझता था। अपने शब्दों के माध्यम से निराला ने न केवल भारत की साहित्यिक जगत में योगदान दिया बल्कि एक राष्ट्र की सामूहिक चेतना पर भी अमिट छाप छोड़ी।

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