वायु प्रदूषण | वायु प्रदूषण के कारण, समस्या, उपाय, निबंध

वायु प्रदूषण | वायु प्रदूषण के कारण, समस्या, उपाय, निबंध

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वायु प्रदूषण क्या है Air Pollution in Hindi

वायु में उपस्थित ऑक्सीजन पर ही जीवन निर्भर है। वायु अनेक गैसों का आनुपातिक सम्मिश्रण है, जिसमें नाइट्रोजन (78%), ऑक्सीजन (21%), आर्गन (0.9%), कार्बन डाई ऑक्साइड (0.03%) आदि विभिन्न गैसों का अनुपात निश्चित होता है। इन गैसों के अनुपात में परिवर्तन से वायु प्रदूषण होता है। वायु के घटकों में परिवर्तन होने अथवा वायु में दूषित पदार्थों की मात्रा बढ़ने से वायु-प्रदूषित हो जाती है, जो जैव समुदाय के लिए त्वरित व दूरगामी रूप से घातक होती है वायु में यह परिवर्तन वायु प्रदूषण कहलाता है।

वायु प्रदूषण नगरों में एक भयावह समस्या बन चुका है जो नगरीय जलवायु में परिवर्तन कर रहा है तथा पर्यावरण निम्नीकरण (Environmental Degradation) के द्वारा अर्थव्यवस्था एवं मानव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से क्षति पहुँचा रहा है। उद्योग एवं परिवहन के साधन वायु प्रदूषकों की बढ़ती सान्द्रता के मुख्य स्रोत हैं –

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण के प्रमुख वायु प्रदूषक ( Air Pollutants ) :

1. भारी धातु कण 

– सीसा

– बेंजीन

– पारा

– कैडमियम

स्रोत (Source) :

• ट्रेटा एथाइल लेड का वाहन ईंधनों के रूप में प्रयोग, जो निकास नली (Exhaust Pipe) के माध्यम से अपशिष्ट रूप में निकलकर वायु में मिल जाते हैं।

• औद्योगिक गतिविधियों में उत्सर्जित लेड वायुमण्डलीय ऑक्सीजन से मिलकर लेड ऑक्साइड बनाता है, जो श्वसन द्वारा जीवों के शरीर में प्रवेश कर जाता है।

• जस्ता, ताँबा, सीसा, व स्टील कारखानों से सम्बंधित धातुओं के साथ जिंक के कण भी वायु में मुक्त होते हैं।

• उद्योग, मिल, शोधक संयंत्र, वेल्डिंग आदि से कैडमियम युक्त पदार्थ निकलते हैं।

• कीटनाशक दवाओं के उत्पादन के दौरान मुक्त रासायन वायु के साथ क्रिया करके विभिन्न ऑक्साइड एवं क्लोराइड यौगिकों का निर्माण करता है।

• दुष्प्रभाव (Side Effects) :

• सीसा, श्वसन द्वारा शरीर के भीतर पहुँच कर वृक्क और यकृत को प्रभावित करता है तथा लाल रक्त कणिकाओं (RBCs) के निर्माण को बाधित करता है।

• सीसा, जल एवं भोज्य पदार्थों के साथ मिलकर ऐसे हानिकारक पदार्थ में परिवर्तित हो जाता है, जो बच्चों पर दीर्घकालिक प्रभाव डालकर उनकी वृद्धि एवं विकास में बाधा उत्पन्न करता है।

• बेंजीन, धुएँ, तम्बाकू, चारकोल तथा गैसोलीन से निकलने वाला पदार्थ है, जो कैंसर कारक होता है। इसकी अधिकता से रक्त कैंसर (Leukemia) होने की सम्भावना होती है।

• पारा, पेंट, सौन्दर्य प्रसाधन तथा कागज की लुग्दी के निर्माण हेतु उपयोगी है। यह वायु में कणों के रूप में मिलकर, यकृत एवं आँखों (विशेषकर शिशुओं में) को गंभीर क्षति पहुँचाता है।

• कैडमियम के कण हृदय सम्बंधी रोग उत्पन्न करते हैं, तथा रक्त दाब (Blood Pressure) को बढ़ाते हैं।

2. कार्बन मोनोक्साइड (Co) एवं कार्बन डाइऑक्साइड CO2 –

स्रोत (Source) :

• जीवाश्म इंधनों के अपूर्ण दहन से इसका उत्सर्जन होता है।

• स्वचालित वाहनों एवं उद्योगों से।

• तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि के धुएँ से।

• घरेलू ईंधन के दहन एवं एल्युमिनियम संयंत्रों से

• कुछ जीव भी CO2 का उत्सर्जन करते हैं।

• औद्योगिक क्रांति से पूर्व CO2 का सान्द्रण 200 PPM था जो वर्तमान में बढ़कर 400 PPM हो गया है।

• तीव्र वन विनाश के कारण भी CO2 की सान्द्रता बढ़ी है।

• दुष्प्रभाव (Side Effects) :

• CO को दम घोंटू गैस (Strangulating Gas) भी कहते हैं।

• श्वसन के माध्यम से यह शरीर में पहुँचकर रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन वहन क्षमता को 300 गुना तक कम कर देती है, जिससे ऑक्सीजन की कमी से मनुष्य की मृत्यु हो सकती है।

• CO2 की बढ़ती वायुमण्डलीय सान्द्रता तापमान वृद्धि एवं पर्यावरण प्रदूषण हेतु उत्तरदायी होती है।

• यह गैस वैश्विक तापन, जलवायु परिवर्तन तथा ओजोन क्षरण में वृद्धि के लिए भी उत्तरदायी है।

3. • सल्फर यौगिक (दूसरे सबसे महत्वपूर्ण प्रदूषक)

– सल्फर डाइऑक्साइड (SO2)

– हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S)

• स्रोत (Source) :

• सल्फर डाई ऑक्साइड के प्रमुख स्रोत कोयला आधारित ताप शक्ति गृह, खनिज तेल शोधनशाला, स्वचालित वाहन, ज्वालामुखी उद्गार, तथा जीवाश्म ईंधन दहन आदि हैं।

• हाइड्रोजन सल्फाइड कोयले की खानों, सीवरों तथा उन कारखानों से उत्पन्न होता है जहाँ H2S ईंधन के रूप में प्रयुक्त होती है।

• दुष्प्रभाव (Side Effects) :

• यह मानव में श्वसन सम्बंधी समस्याओं, पौधों में क्लोरोसिस एवं अम्ल वर्षा के लिए उत्तरदायी होता है।

• आँखों में जलन, दमा, खाँसी, फेफड़ों के रोग का होना।

• शहरी क्षेत्रों में विषाक्त धूम्र कोहरे (Smog) का निर्माण होता है।

• SO2 को क्रैकिंग गैस भी कहते हैं जो पत्थरों के लगातार सम्पर्क में रहने से उन्हें हानि पहुँचाती है।

4. • नाइट्रोजन यौगिक 

– नाइट्रस ऑक्साइड

– नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड

– अमोनिया

• स्रोत (Source) :

• अवशेषों के जलने, स्वचालित वाहनों, विद्युत उत्पादक संयंत्रों तथा वायुमंडलीय अभिक्रिया से नाइट्रोजन यौगिकों का उत्सर्जन होता है। 
 
• नाइट्रोजन ऑक्साइड की सूर्यातप से क्रिया द्वारा नाइट्रोजन डाईआक्साइड, ओजोन एवं PAN (परॉक्सी एसिटिल नाइट्रेट) का निर्माण होता है।

• दुष्प्रभाव (Side Effects) :

• मानव शरीर में इसके अतिरिक्त सान्द्रण से मसूड़ों में सूजन, रक्त स्राव, ऑक्सीजन अल्पता, कैसर, निमोनिया आदि हो जाते हैं।

• यह अम्ल वर्षा के लिए उत्तरदायी होती है। इससे ओजोन परत के सान्द्रण में कमी होती है।

• परॉक्सी एसिटिल नाइट्रेट (PAN) त्वचा कैंसर का कारक बनता है।

• इससे आँखों व फेफड़ों में जलन होती है। इससे पादपों की उत्पादकता बाधित होती है।

5. • हाइड्रोकार्बन्स

– बेंजीन-एथिलीन

• स्रोत (Source) :

• इसका उत्सर्जन जीवाश्म ईधनों के जलने गैसोलीन-टैंकों, कार्युरेटर्स, औद्योगिक गतिविधि, नगर निगमों के लैंडफिल, पेट्रोलियम एवं वाहन उद्योगों से होता है।

• दुष्प्रभाव (Side Effects) :

• यह कैंसर कारक (Carcinogenic) है।

• इसका उच्चतम स्तर सांद्रण पौधों एवं प्राणियों के लिए जहरीला है।

6. • क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स (क्लोरीन-फ्लोरीनकार्बन तत्वों के यौगिक)

• स्रोत (Source) :

• एयरोसॉल, रेफ्रिजरेटर, विलायक, फोम, एयरकंडीशनर आदि से इसका उत्सर्जन होता है।

• दुष्प्रभाव (Side Effects) :

• यह ओजोन क्षरण हेतु उत्तरदायी होती है, जिससे पराबैंगनी किरणों की सघनता पृथ्वी पर बढ़ जाती है, परिणामस्वरूप चर्म रोग, कैंसर आदि रोग हो जाते हैं।

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वायु प्रदूषण

प्रकाश रासायनिक धूम कोहरे के प्रभाव (Effects of Photochemical Smog) :

• प्रकाश रासायनिक धूम कोहरे के निर्माण से पृथ्वी पर पहुँचने वाले प्राकृतिक सौर विकिरण की मात्रा घट जाती है, जिसके कारण रिकेट्स (सूखा रोग) जैसे रोगों में वृद्धि होती है।

• धूम कोहरे के निर्माण से श्वसन सम्बंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

• इसके निर्माण से दृश्यता घट जाती है, जिससे यातायात परिचालन में समस्या उत्पन्न होती है।

एरोसॉल (Aerosol) :

एरोसॉल सूक्ष्म कण होते हैं, जिनका आकार 1μ से 10μ तक का होता है। कारखानों, ताप विद्युत घरों, स्वचालित वाहनों, कृषि कार्यों से इनका उत्सर्जन होता है। ये ठोस अथवा तरल दोनों अवस्था में हो सकते हैं। एरोसॉल, सौर विकिरण के परावर्तन को बढ़ाकर पृथ्वी के एल्बिडो में वृद्धि करते हैं जिससे पृथ्वी के तापमान में कमी (Global Cooling) होती है। धूल के कण आकार में एरोसॉल से बड़े होते हैं तथा प्राकृतिक एवं मानव जनित दोनों प्रकार के होते हैं।

एल्बिडो (Albedo) किसे कहते हैं?

किसी सतह पर आपतित सौर विकिरण तथा सतह द्वारा परावर्तित सौर विकिरण के अनुपात को एल्बिडो कहते हैं।

फ्लाई ऐश (Fly Ash) :

• फ्लाई ऐश का उत्सर्जन कोयला आधारित ताप विद्युत गृहों से होता है। इनका निर्माण एल्युमिनियम सिलिकेट, सिलिकन डाइआक्साइड तथा कैल्शियम आक्साइड से होता है। यह बारीक चूर्ण होता है, जिसमें सीसा, आर्सेनिक, कोबाल्ट, बोरान, क्रोमियम एवं कॉपर आदि भारी धातुओं के कण उपस्थित होते हैं। यह जन्तुओं के श्वसन तंत्र तथा पौधों की पत्तियों पर जमा होकर प्रकाश संश्लेषण क्रिया को बाधित करता है।

• फ्लाई ऐश का उपयोग ईंट निर्माण में, सीमेंट के रूप में, खेतों में जलग्रहण क्षमता बढ़ाकर फसल उत्पादन बढ़ाने तथा भूमि भराव (Landfill) में किया जा सकता है।

आंतरिक वायु प्रदूषण (Indoor Air Pollution) :

अवैज्ञानिक शहरीकरण एवं अनियोजित निर्माण से घर के भीतर के प्रदूषकों की सान्द्रता, बाह्य प्रदूषण की तुलना में कई गुना अधिक हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आंतरिक प्रदूषण जलावन लकड़ी चारकोल तथा गोबर के उपलों आदि द्वारा खाना बनाने के कारण होता है जबकि शहरी क्षेत्रों में घरों में वातायन (Ventilation) की कमी, रासायनिक उत्पादों के प्रयोग, फोटोकॉपी मशीनों, सिगरेट के धुएँ आदि से होता है।

आंतरिक प्रदूषक (Indoor Pollutants) :

• रेडॉन : यह गैस मृदा से प्राकृतिक रूप से उत्सर्जित होती है। शहरी घरों में वातायन की कमी से इसका सान्द्रण होता है जो फेफड़े के कैंसर का कारण बनती है।

• धूम्रपान : तम्बाकू धुएँ से कैंसर कारक रसायनों का उत्सर्जन होता है। इससे अस्थमा गले में जलन ब्रोंकाइटिस जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।

• घरों में आर्द्रता प्रेरित फफूंद तथा बालों की रूसी (Dandruff), पौधों के परागकण (Pollen Grains) आदि वायु में एलर्जिक तत्वों को मुक्त करके आंतरिक प्रदूषण में वृद्धि करते हैं।

• वाष्पशील कार्बनिक यौगिक : पेंट, कीटनाशक, निर्माण सामग्री, गोंद, परमानेंट मार्कर आदि से ठोस या तरल रूप में प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं।

• एयर फ्रेशनर (Air Freshener) : इसमें विभिन्न प्रकार के कार्सिनोजेन्स तथा फॉस्फेट एस्टर जैसे विषाक्त पदार्थ पाये जाते हैं। अधिकांश उत्पादों में ऐसे रसायन पाए जाते हैं जो अस्थमा के कारक हो सकते हैं। ये प्रजनन सम्बंधी विकार भी उत्पन्न कर सकते हैं।

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वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण पर नियंत्रण (Control on Air Pollution) :

• वायु प्रदूषण पर नियंत्रण से पूर्व उसका आकलन किया जाता है कि वायु प्रदूषित है, अथवा नहीं। वायु प्रदूषण मापन प्रतिदर्श (Sample) की सहायता से किया जाता है।

• वायु में सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा के आकलन हेतु बब्लर विधि (Bubbler Method) का प्रयोग किया जाता है जबकि फ्लोराइड की उपस्थिति का अनुमान रंगों की प्रतिक्रिया (Reaction of Colours) से किया जाता है।

• स्वचालित वाहनों, उद्योगों, विद्युत उत्पादक संयत्रों आदि से होने वाले उत्सर्जन पर नियंत्रण करके वायु प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सकता है।

स्वचालित वाहनों पर नियंत्रण (Control on Automotives) :

• मोटर वाहनों के प्रदूषण की नियमित जाँच होनी चाहिए एवं पुराने वाहनों को प्रतिबन्धित कर देना चाहिए। डीजल ट्रेनों के स्थान पर विद्युत ट्रेनों तथा CNG आधारित परिवहन को प्रोत्साहन देना चाहिए।

• अन्तर्राष्ट्रीय स्वच्छ परिवहन समिति के अनुसार कुल PM (Particulate Matter) उत्सर्जन का 56% तथा NO, का 70% उत्सर्जन डीजल वाहनों के द्वारा होता है।

• वाहनों के कार्बोरेटर तथा टंकियों के ईंधन की वाष्प को नियंत्रित किया जाना चाहिए।

• वाहनों में फिल्टर का प्रयोग किया जाए तथा मोटर व्हीकल एक्ट 1988 तथा अन्य सम्बंधित कानूनों का कठोरता से पालन किया जाये।

• भारत स्टेज उत्सर्जन मानक BS-IV वर्ष 2017 से 13 प्रमुख शहरों में बड़े वाहनों के लिए लागू किये जा चुके हैं तथा BS-VI मानक 2020 से प्रस्तावित है। अत्यधिक प्रदूषण के कारण हाल ही में सीमित रूप से दिल्ली एन. सी. आर. क्षेत्र में BS-VI मानकों को लागू किया गया है।

बी. एस. मानक (Bharat Stage Standards) :

भारत सरकार वाहनों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वाहनों के उत्सर्जन के मानक निर्धारित करती है, इसे ही भारत स्टेज (BS) कहा जाता है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय एवं केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड के द्वारा तय किया जाता है।

वर्तमान मानक में BS-VI का चलन में है।

बी. एस. मानक (Bharat Stage Standards) की विशेषताएं :

• वाहनों में डीजल पर्टिकुलेट फिल्टर (DPF) लगे होंगे।

• सिलेक्टिव रिडक्शन टेक्नॉलॉजी का प्रयोग होना।

• PM 2.5 के 80-90% कण रोके जा सकेंगे।

• नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन पर नियंत्रण होगा।

NOTE : दिल्ली सरकार की Odd – Even पहल भी वायु प्रदूषण के घातक परिणामों पर नियंत्रण के प्रयास स्वरूप शुरू की गयी है।

उद्योगों पर नियंत्रण (Control on Industries) :

वायु प्रदूषण

• औद्योगिक विकास से उत्पन्न प्रदूषकों को एकत्र करके इलेक्ट्रो स्टैटिक संयंत्र के द्वारा तथा कानूनी नियंत्रणों को लागू करके नियंत्रित किया जा सकता है।

• चिमनियों की पर्याप्त ऊँचाई के नियमन (Regulation) के साथ साथ उनमें बैग फिल्टर का प्रयोग किया जाना चाहिए।

• उद्योगों की स्थापना सघन बसावट से दूर तथा नवीन उद्योगों की स्थापना से पूर्व प्रदूषणकारी क्रियाविधियों का प्रबंधन तथा उचित मानदण्ड निर्धारित किए जाने चाहिए।

• अत्यधिक प्रदूषण करने वाले पदार्थों के उत्पादन एवं उपयोग पर त्वरित नियंत्रण करना चाहिए अथवा प्रतिबन्धित करना चाहिए।

• पर्यावरण अनुकूल क्रियाओं को प्रोत्साहन देना चाहिए जिससे प्रदूषकों एवं हानिकारक अपशिष्टों का उत्सर्जन कम हो।

राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (National Air Quality Monitoring Programme : NAMP) :

• NAMP के अंतर्गत 35 मेट्रो शहरों एवं 35 अन्य शहरों सहित विभिन्न राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केन्द्र शासित प्रदेशों की प्रदूषण नियंत्रण समितियों तथा नीरी (NEERI) के सहयोग से केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड द्वारा वायु गुणवत्ता की जाँच की जाती है।

NAMP निम्नलिखित चार प्रदूषकों पर नियमित निगरानी रखता है –

1. SO2

2. NO2

3. SPM

4. PM10

राष्ट्रीय वायु गुणवक्ता सूचकांक (National Air Quality Index) :

• यह सूचकांक 6 अप्रैल, 2015 से देश के बड़े नगरों में वास्तविक समय (Real Time) के आधार पर वायु गुणवत्ता निगरानी हेतु प्रारम्भ किया गया, जिसमें छह गुणवत्ता श्रेणियों के साथ 8 प्रदूषकों पर विशेष निगरानी का प्रावधान है।

• इस सूचकांक में शामिल प्रदूषक अग्रलिखित हैं- PM-10, PM-2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ओजोन, अमोनिया, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड तथा लेड (सीसा)।

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण एवं नियंत्रण अधिनियम – 1981 :

• बढ़ते औद्योगीकरण एवं वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा वायु (प्रदूषण व नियंत्रण) अधिनियम 1981 को अधिनियमित किया गया। वर्ष 1987 में एक संशोधन के द्वारा इस अधिनियम के अन्तर्गत ध्वनि प्रदूषण को भी शामिल किया गया।

• इस अधिनियम को लागू करने का अधिकार केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिया गया, जिसके अनुसार केन्द्र व राज्य सरकार दोनों को वायु प्रदूषण से होने वाले प्रभावों का सामना करने के लिए निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान की गई हैं –

• केन्द्रीय एवं राज्य बोर्डो की स्थापना का प्रावधान तथा उन्हें शक्तियाँ एवं कार्यकलाप सम्बंधी निर्देश देना।

• प्रदूषित इकाइयों को बंद करने का अधिकार।

• राज्य के किसी भी क्षेत्र को वायु प्रदूषित क्षेत्र घोषित करना।

• औद्योगिक इकाइयों पर प्रतिबन्ध तथा उनके प्रारम्भ से पहले अनापत्ति प्रमाण पत्र की अनिवार्यता तय करना।

• प्रदूषणों के नमूने लेने की शक्ति तथा इसके लिए किसी भी औद्योगिक इकाई में प्रवेश की शक्ति है।

• अधिनियम का उल्लंघन करने वालों को अभियोजित करने की शक्ति है।

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